Wednesday 15 January 2020

तुम्हारी यादें


तुम्हारी यादें
क्लियोपैट्रा का हमाम
दूध के टब में
गुलाब की पंखुड़ियों का पैगाम

तुम्हारी यादें
एसटी लॉडर की स्लिम सी
इत्र की बोतल का
बस महकता सा गुलफाम

तुम्हारी यादें
ओल्ड मॉन्क की
चालीस बरस रखी रम का
आह बहकता सा शबाब

तुम्हारी यादें
बंद दरीचों से आती
छुपती शर्माती जिस्म को गरमाती
कुनकुनाती धूप का सलाम

तुम्हारी यादें
इमली से खट्टा गुड़ से मीठा
बिना ज़र्दे, बिना चूने का
मीठा वाला बनारसी पान

तुम्हारी यादें
ओस की चंद बूंदों पर
नरम उंगली के कंपकपाते पोरों से
उकेरा प्रेम का स्वीट नाम

तुम्हारी यादें
उफ़्फ़फ़ और क्या उपमा
क्या उपमान दूँ अब 'नीलपरी'
चांदनी रात में नहाया दूधिया ताज

Wednesday 24 May 2017

फ़ीनिक्स सी ज़िन्दगी


अज़ाब सी ज़िन्दगी
खा ली,
अपनी उम्र बराबर
प्रोज़ाक की छोटी गोलियां
20 मिलीग्राम की
नींद के आगोश में
शून्य के चरम तक पहुँचने की
फिर एक नाकाम कोशिश
समय को विराम देने की
भरसक जद्दोजहद में
टूटी-बिखरी
बिखर के उलझी
उलझ के सुलझी
कितनी ही बार राख हुई
फिर अपनी ही राख से जी उठी
फ़ीनिक्स सी ज़िन्दगी
क्योंकि वो एक जिस्म नहीं 'नीलपरी'
एक माँ थी..



Sunday 21 May 2017

याद

कह दो उससे
याद आती तो है
कभी कभार उसकी
पर अब नहीं बनते
वो पारदर्शी
नमकीन बुलबुले
नीली आँखों के कोर..
अब नहीं धड़कता दिल
सुनके उसका नाम
दिल मचलता तो है
पहनने को उसका दिया
जयपुरी नीला सूट और
उससे मैच करते
चांदी के बूंदे
पर ज़िद नहीं करता..
रात आती तो है अब भी
पर नहीं जाते अब
हम और तुम
ख्वाब में भी
डल झील के उस पार..
सूख गए बौगैनविल्ला
गुडहल जो बोये थे
हमने संग संग
बंद कर दिए मँगाने
फूलवाले से भी फूल
मुरझा जो गए उसके दिए
हर रंग के नायाब गुलाब..
हाँ कह दो उससे
कैनवास पे चेहरे नहीं
अब बनते हैं हमसे
सूरज चाँद और तारे..
अब क्यूं सताएगी
तनहा रात हमें
करती है न वो हमसे
कहानी भोर तलक....

घरौंदा

न जाने मन में
क्या आई उस रोज़
चाक मिटटी से
बनाते हुए मूरत
बना लिया
सीली मिट्टी का
छोटा सा
घरौंदा भी
सोचा रचाऐंगे
बचपन जैसा
गुड्डा गुड़िया का
ब्याह फिर से...
शायद अब तलक
बचपना था मुझ में
नासमझ थी
नादान भी
छोड़ दिया वो
प्रेम का खिलौना
सुखाने तेज़ धूप...
गमों की चली आंधी
बरखा नीर बहाए
टूट गया
बह गया
सपनों वाले प्रेम का
छोटा सा वो आशियां...

एक्सपायरी डेट

वो कहते हैं
वो सच ही तो कहते हैं
जिस्म मरता है
रूह नहीं मरती
रूह तो,
अजर है
अमर है
जिस्म की उम्र होती है
बोतल पर लिखी
एक्सपायरी पढ़ते हो न
ऐसी ही एक्सपायरी डेट के साथ
आता है इक इक जिस्म
या के फिर मैन्युफैक्चर होता है
खुशियाँ मनाते हो न
हर बर्थडे
ऐसे ही मनाना तुम
खुशियाँ
एक्सपायरी एनिवर्सरी पर भी
और करना इंतज़ार
रूह का मेरी
क्योंकि
आऊँगी न फिर फिर
पहन नया चोला
अगले,
फिर उससे अगले जन्म,
हर जन्म
तुम्हारी
सिर्फ तुम्हारी
परी बनकर
पहचानना होगा तुमको
मेरी पलकों से छुपी
आँखों की गहराई में उतर
तलाशना होगा अपना अक्स
क्योंकि
वो कहते हैं न
शरीर बदलता है
पर आँखें नहीं बदलती
एक प्रेममयी रूह

चन्ना


आहें जब खलवत से टकराती हैं
नीले अक्सों के साए से
            तेरी तस्वीर उभर कर आती है
अश्कों का साथ लेकर
             यादों की बारात सी बन जाती है
चंद लरजते साये से
             रह रह के दिल को जलाते हैं
           
आहें जब खलवत से टकराती हैं
 मौन के रुंधे गले से
              रुलाई सी फूट जाती है
गालों को छूता, लटों में उलझता
              इक तन्हा सा कजलाया मोती
होठों पे लुढ़कना चाहता है
             ओ बेदर्दी, याद तेरी दिलाता है

आहें जब खलवत से टकराती हैं
हर निशा अमावस सी हो जाती है
           पगलाई सी तारों से बतियाती हूँ
हंसिए सा चन्दा अट्टारी पे
            जिगर के पार उतरना चाहता है
कलेजे को थामे, धड़कन को रोके
           तेरे क़दमों की आहट को तरसती हूँ

ओ चन्ना मेरिया अब तो आजा
     ये तन्हाई नागिन सी, मुझे डसने को आतुर होती है


* खलवत- एकांत
         

         

खुद से परिचय

सोलह बरस की अनचाही
           अंधियारी कैद से रिहाई की
चलो आज वर्षगाँठ मनाई जाए
            पैंतालीस की उम्र में 'नीलपरी'
खुद से खुद का, आज परिचय कराया जाए

नटखट, चंचल तितली सी उड़ती
            रंग बिरंगे पंखों सी, नीली-गुलाबी फ्रॉक
देखो छोटी गोलमटोल, हाथ में लॉलीपॉप
           बेटी सी कोमलता, बेटे जैसे काम जो करे
मासूम परी से आज परिचय किया जाए

पढ़ने में अव्वल, गोल्डमेडल जीते अनेक
            कंप्यूटर की नौकरी,पेंटिंग का है शौक
माँ-पापा की शान, मोहल्ले भर की दुलारी
            पराई हुई, दुल्हन बनी फ़ूली न समायी
सुलक्षणा परी से आज परिचय किया जाए

सलोने सपन संजोये, दरिंदगी लिखी लकीरों में
            घर-नौकरी-रुपयों का गणित अकेली करे
हैवानियत से नित्य वो अपनी दुर्गत बनवाये
            अपनों से कोख बचाने खातिर रोबोट बनी
वन-मैन-आर्मी परी से आज परिचय किया जाए

जल बिन मछली की तड़प कौन है समझा
            गिरते हौंसले बुलंद, ले साईं का नाम
महलों को ठोकर मारी, नहीं उसे कोई गम
            प्रगतिपथ पर उड़ी मासूमियत ले संग
दृढ़निश्चयी-धैर्यशील परी से परिचय किया जाए

चलो पैंतालीस की उम्र में 'नीलपरी'
      खुद से खुद का, आज परिचय कराया जाए